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महात्मा जी आप तो ठीक ही कह रहे लेकिन समाज अब पर्दे में नहीं रह सकता हैं।
क्यों की किसी की आजादी छीनना यह कौन - सा धर्म है।
क्यों कि समाज स्वतंत्र रहना चाहता है।
कौन इंसान या बालक स्वतंत्र नहीं रहना चाहता।
सभी को स्वतंत्र रहने का अधिकार है।
किसी की स्वतंत्र को छीनना एक तरह का अपराध ही है।
क्यों की जब इंसान अपराध करता है तो उसकी आजादी छीनी जाती है परन्तु आप तो पहले ही छीन ले रहे है।
अर्थात सभी को समाज में रहने का अधिकार तो नहीं है परन्तु स्वतंत्र का अधिकार तो है
क्यों की समाज एक तरह का समुदाय है जिसमें अलग - अलग धर्म, जाती के लोग रहते है।
और उनमें ऊंचा - नीचा का भेद - भाव होता है।
जिससे लोगो में हीनता की भावना अती है।
सभी धर्म, जाती के लोगो को उनके इच्छ या आकांक्षा के अनुसार कार्य करने का अधिकार है परन्तु किसी का शारीरिक, मानसिक, अपमान न   हो। अगर होता है तो वे अपराध  में आएंगे।

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